हरिद्वार, 25 दिसम्बर। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद एवं मनसा देवी मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष श्रीमहंत रविन्द्रपुरी महाराज ने कहा कि अखाड़ा परिषद की और से जनवरी में जूना अखाड़े में माया देवी मंदिर के प्रांगण मे भव्य और विशाल संत समागम का आयोजन कर सनातन धर्म संस्कृति के संरक्षण संवर्धन के संघर्ष में नायक की भूमिका निभा रहे संघ प्रमुख मोहन भागवत को सम्मानित किया जाएगा।
अखाड़ा परिषद अध्यक्ष श्रीमहंत रविन्द्रपुरी महाराज ने हरिद्वार में आयोजित एक कार्यक्रम में संघ प्रमुख मोहन भागवत के बयान जिसमें उन्होंने कहा है कि सनातन हमेशा था, हमेशा है और हमेशा रहेगा, का समर्थन करते हुए कहा कि आज पूरी दुनिया सनातन की और बढ़ रही है, और जल्द ही भारत विश्व गुरु की पदवी पर आसीन होगा।
श्रीमहंत रविन्द्रपुरी महाराज ने कहा कि जूना पीठाधीश्वर के आचार्य पीठ पर आसीन होने के 25 वर्ष पूरे होने पर आयोजित किए गए कार्यक्रम में अखाड़ा परिषद को आमंत्रित नहीं किए जाने से समस्त अखाड़ा परिषद में रोष है। इससे अखाड़ा परंपरा का अपमान हुआ है। उन्होंने कहा कि आचार्य पीठ का अस्तित्व भी अखाड़ों से ही है। जूना पीठाधीश्वर के कार्यक्रम में जूना अखाड़े के पंचों और अखाड़े के महामंडलेश्वरों, जूना अखाड़े के सहयोगी आह्वान व अग्नि अखाड़े को भी आमंत्रित नहीं किया जाना बेहद खेदजनक है। संत परंपरा और सनातन धर्म संस्कृति की संवाहक अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद की अनदेखी किए जाने से सभी तेरह अखाड़ों के संतों में रोष है। श्रीमहंत रविंद्रपुरी ने कहा कि सन्यासी, बैरागी, निर्मल व उदासीन सभी तेरह अखाड़े उनकी आत्मा में बसते हैं। अखाड़ों का अपमान बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
श्री पंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन के कोठारी महंत राघवेन्द्र दास महाराज और श्री पंच निर्मोही अनी अखाड़े के सचिव महंत गोविंद दास महाराज ने कहा कि आचार्य परंपरा अखाड़ों से बनती है। यदि आचार्य ही अखाड़ों को नहीं मानते हैं तो अखाड़ों को इस पर विचार करना चाहिए। क्योंकि अखाड़े ही आचार्य महामंडलेश्वर, महामंडलेश्वर और महंत आदि पदवी देते है। जो संत महंत कहते हैं कि हमारे पास लाखों नागा सन्यासी हैं तो यह उनकी गलतफहमी है। नागा सन्यासी अखाड़ों से हैं और अखाड़े ही नागा सन्यासी बनाते हैं। कोठारी महंत राघवेंद्र दास महाराज और महंत गोविंददास महाराज ने कहा कि जब निरंजनी अखाड़े को कार्यक्रम में आमंत्रित नहीं किया गया तो अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर को भी कार्यक्रम में शामिल नहीं होना चाहिए था। इससे अखाड़े का अपमान हुआ है।