हरिद्वार समाचार– जयराम पीठाधीश्वर स्वामी ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी महाराज ने कहा है कि संत परंपरा सनातन संस्कृति की वाहक है और भारतीय संस्कृति का जो स्वरूप संतो ने विश्व पटल पर प्रस्तुत किया है वह सराहनीय है। भूपतवाला स्थित श्री श्री आत्म योग निकेतन धाम आश्रम में आयोजित संत समागम के दूसरे दिन श्रद्धालु भक्तों को संबोधित करते हुए स्वामी ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी महाराज ने कहा कि त्याग एवं तपस्या की प्रतिमूर्ति ब्रह्मलीन स्वामी आत्मानंद सरस्वती महाराज एक महान संत थे। जिन्होंने संपूर्ण जीवन भारतीय संस्कृति एवं सनातन धर्म का प्रचार प्रसार कर राष्ट्र निर्माण में अपना अतुल्य योगदान प्रदान किया। युवा पीढ़ी को उनके आदर्शो को अपनाकर सनातन धर्म के उत्थान में अपना सहयोग प्रदान करना चाहिए। कार्यक्रम को अध्यक्ष पद से संबोधित करते हुए महंत देवानंद सरस्वती महाराज ने कहा कि संतों का जीवन सदैव परोपकार को समर्पित रहता है। ब्रह्मलीन स्वामी आत्मानंद सरस्वती महाराज ने सदैव ही भावी पीढ़ी को संस्कारवान बनाकर धर्म के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया। समाज कल्याण में उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता। आत्म योग निकेतन धाम के प्रमाध्यक्ष महामंडलेश्वर साध्वी स्वामी संतोष आनंद सरस्वती महाराज ने कहा कि गुरु शिष्य परंपरा से ही भारतीय संस्कृति एवं सनातन धर्म की पहचान है। पूज्य गुरुदेव ब्रह्मलीन स्वामी आत्मानंद सरस्वती महाराज एक युगपुरुष थे। जिन्होंने सदैव गरीब, असहाय लोगों को मदद पहुंचा कर सदैव समाज की सेवा की। उनके अधूरे कार्यों को पूरा करना है मेरा मुख्य उद्देश्य है। उनके द्वारा गंगा तट से प्रारंभ किए सेवा प्रकल्प में निरंतर बढ़ोतरी कर संतों की सेवा की जा रही है। महामंडलेश्वर आचार्य स्वामी महेश आनंद सरस्वती महाराज ने कहा कि योग्य गुरु को ही सुयोग्य शिष्य की प्राप्ति होती है। ब्रह्मलीन स्वामी आत्मानंद सरस्वती महाराज की परम शिष्य महामंडलेश्वर साध्वी स्वामी संतोष आनंद सरस्वती महाराज अपने गुरु के बताए मार्ग पर चलकर उनके अधूरे कार्यों को पूरा कर कर उनके सपने को साकार कर रही है। समस्त संत समाज उन्हें आशीर्वाद प्रदान करता है कि वे इसी प्रकार समाजवाद संतों की सेवा करती रहे और राष्ट्र निर्माण में अपना सहयोग प्रदान करें। श्री पंचायती अखाड़ा निर्मल के कोठारी महंत जसविन्दर सिंह महाराज ने कहा कि संतों का जीवन निर्मल जल के समान होता है। ब्रह्मलीन आत्मानंद सरस्वती महाराज एक विद्वान महापुरूष थे। जिन्होंने समाज को सदैव नई दिशा प्रदान की। इस दौरान मुखिया महंत भगतराम, मुखिया महंत दुर्गादास महाराज, श्रीमहंत महेश्वरदास महाराज, कोठारी महंत दामोदर दास, महंत निर्मलदास, स्वामी विवेकानंद महंत कमलदास, अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के उपाध्यक्ष महंत देवेंद्र सिंह शास्त्री, श्रीमहंत सत्यगिरी, महंत खेमसिंह, महंत अमनदीप सिंह आदि संत मौजूद रहे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *