हरिद्वार समाचार– श्री पंचायती अखाड़ा निरंजनी के संतों ने ग्रहस्थ संतों अथवा अपने परिवार से संबंध रखने वाले संतों के खिलाफ कार्रवाई कर उन्हें अखाड़े से निष्कासित करने निर्णय लिया है। मायापुर स्थित श्री चरण पादुका मंदिर में आयोजित बैठक को संबोधित करते हुए अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमहंत नरेंद्र महाराज ने कहा कि पंच परमेश्वर की अध्यक्षता में सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया गया है कि जो भी संत घर परिवार से रिश्ता रखे हुए है अथवा ग्रहस्थ है। उनको अखाड़े से निष्कासित किया जाएगा। जिसका सभी संतों ने हाथ उठाकर समर्थन किया। अखाड़ा परिषद अध्यक्ष श्रीमहंत नरेंद्र गिरी महाराज ने कहा कि सन्यास परंपरा अपनाने पर संस्कार के बाद संत का पुर्नजन्म होता है। जिसके लिए संत अपना घर परिवार, संपत्ति सभी का त्याग करते हैं। इसलिए संत बनने के बाद अपने परिवारजनों से रिश्ता रखना सन्यास परंपरा के खिलाफ है। यदि कोई भी संत अपने परिवार से रिश्ता रखता है और यह बात प्रमाणित होती है, तो उसे अखाड़े से बाहर किया जाएगा। श्रीमहंत नरेंद्र गिरी महाराज ने कहा कि अखाड़े या मढ़ी का के अन्दर किसी भी संत का परिवार अथवा कोई रिश्तेदार उनसे मिलने आता है और यह बात अखाड़े के संज्ञान में आती है तो उसे तत्काल निंरजनी अखाड़े से बाहर किया जाएगा। क्योंकि यदि हम घर परिवार से संबंध रखते हैं तो अखाड़े के वृद्ध संतों ने जो संपत्ति अर्जित की है। उसे हम परिवार को दे तो परिवार भी दुखी रहेगा और हम स्वयं भी दुखी रहेंगे। निरंजनी अखाड़े के कुंभ मेला प्रभारी श्रीमहंत रविन्द्रपुरी महाराज ने कहा कि यह परम्परा प्राचीन काल से चली आ रही है। अखाड़े के वृद्ध संतों ने भी यह नियम अपनाया है। कोई भी संत अपने परिवार, माता पिता से कोई रिश्ता रखेगा तो उसे अखाड़े से बाहर किया जाएगा। त्याग व तपस्या का प्रतीक समझे जाने वाले संत ही यदि अपने परिवार का लाभ नहीं त्यागेंगे तो अखाड़े की परम्पराओं का निर्णय सहीं ढग से नहीं होगा। इसलिए निरंजनी अखाड़े में इस प्रकार के किसी भी संत को शामिल होने का अधिकार नहीं है। निरंजन पीठाधीश्वीर स्वामी कैलाशानंद गिरी महाराज ने अखाड़े के पंच परमेश्वर के निर्णय को सर्वोपरि बताते हुए कहा कि घर परिवार त्यागकर सन्यास लेने के बाद किसी को भी परिवार से संबंध नहीं रखना चाहिए। अखाड़े द्वारा लिए निर्णय का सभी को पालन करना चाहिए। इस दौरान श्रीमहंत रामरतन गिरी, श्रीमहंत दिनेश गिरी, श्रीमहंत राधे गिरी, महंत नीलकंठ गिरी, श्रीमहंत ओंकार गिरी, श्रीमहंत केशवपुरी, महंत मनीष भारती, महंत रामकुमार गिरी, दिगंबर आशुतोष पुरी, दिगंबर बलवीर पुरी, स्वामी रघुवन आदि मौजूद रहे।

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