ज्ञान की अविरल धारा है श्रीमद् भागवत कथा-स्वामी हरिचेतनानंद
हरिद्वार, 29 सितम्बर। महामंडलेश्वर स्वामी हरिचेतनानंद महाराज ने कहा है कि श्रीमद् भागवत कथा पतित पावनी मां गंगा की भांति बहने वाली ज्ञान की अविरल धारा है। जिसे जितना ग्रहण करो उतनी ही जिज्ञासा बढ़ती है और प्रत्येक सत्संग से अतिरिक्त ज्ञान की प्राप्ति होती है। भूपतवाला स्थित स्वतः मुनि उदासीन आश्रम में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के छठे दिन श्रद्धालु भक्तों को संबोधित करते हुए महामंडलेश्वर स्वामी हरिचेतनानंद महाराज ने कहा कि भगवान श्री कृष्ण की वाणी ही श्रीमद्भागवत है और भगवान श्री कृष्ण की लीलाएं अपरंपार हैं। जिन्हें देखने के लिए भगवान शिव को भी गोपियों का रूप धारण करना पड़ा था। कलयुग में मोक्ष प्राप्ति का सर्वोत्तम साधन भगवान और भक्त की यह कथा है। जो श्रद्धालु भक्त कथा का श्रवण कर लेते हैं। उनका जीवन भवसागर से पार हो जाता है। स्वतः मुनि उदासीन आश्रम के अध्यक्ष महामंडलेश्वर स्वामी सुरेश मुनि महाराज ने कहा कि कथाएं तो अनावृत चलने वाले धार्मिक अनुष्ठान हैं। परंतु प्रस्तुति मन को स्वंदित करती है। श्रीमद् भागवत कथा कल्पवृक्ष के समान है। जिससे सभी इच्छाओं की पूर्ति की जा सकती है। सोया हुआ ज्ञान व वैराग्य कथा श्रवण मात्र से जागृत हो जाता है और कथा श्रवण का लाभ तभी है। जब हम इसमें निहित सार को अपने जीवन व्यवहार में शामिल करें। वास्तव में श्रीमद्भागवत कथा मोक्ष की प्रदाता है। जो व्यक्ति के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करती है। इस अवसर पर महंत सूरज दास, महंत रामानंद सरस्वती, स्वामी शिवानंद, स्वामी ऋषि रामकृष्ण, महंत प्रह्लाद दास, भक्त दुर्गादास, महंत बिहारी शरण, महंत रघुवीर दास आदि संत मौजूद रहे।

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