तालमेल में लगेगा सप्ताह भर का वक्त, राजद को फिर लगा सतीश गुप्ता का झटका
पटना (विजय शंकर )। बिहार में महागठबंधन का पेंच अभी तक उलझा है जो कब खुलेगा, इसका कोई स्पष्ट संकेत नहीं मिला है, मगर इतना जरूर है कि महागठबंधन अपने दलों के बीच लगातार सीट समझौते को लेकर बातचीत कर रहा है । नया फार्मूला यह है कि दल कोई भी हो पर जो दंगल जीतेगा महागठबंधन का टिकट उसी को मिलेगा । अभी सम्भावना जताई जा रही है कि सीटों पर अंतिम निर्णय लेने में अभी भी 5 से 7 दिनों का वक्त लग सकता है ।
इस बीच राजद को फिर बड़ा झटका लगा है और लालू यादव के एक और करीबी सतीश गुप्ता ने राजद से नाता तोड़ लिया है । राजद में वे प्रदेश महासचिव के साथ-साथ राज्य संसदीय बोर्ड के सदस्य भी थे जिससे उन्होंने इस्तीफा दे दिया है । 30 साल तक राजद में रहने वाले सतीश गुप्ता ने स्वर्णकार समाज से होने के कारण वैश्य समाज के नेताओं को राजद से जोड़ने का काम किया था । राजद छोड़ने के क्रम में उन्होंने बताया कि ईमानदार और वरिष्ठ लोगों का राजद पार्टी में अब सम्मान नहीं है ।
इधर राजद फिलहाल महागठबंधन के साथ जुड़ी पार्टियां कांग्रेस समेत वाम दलों भाकपा, माले व माकपा है जबकि रालोसपा और वीआईपी पार्टी भी महागठबंधन में एक साथ चुनाव लड़ने को प्रतिबद्ध है । इसके अतिरिक्त इस बार झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) भी महागठबंधन का हिस्सा बनकर बिहार चुनाव में आदिवासी बहुल इलाकों में अपना किस्मत आजमाईश करने वाली है । इसके लिए झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने एक प्रस्ताव राष्ट्रीय जनता दल को भेज दिया है । राजद के साथ इस बार समाजवादी पार्टी (सपा) भी आ खड़ा हुआ है । राजद में अभी तक उम्मीदवारों का चयन ना होना, घोषणा न होना इस बात का संकेत है कि राजद इस बार के चुनाव में फूंक-फूंक कर पैर रखकर चल रहा है और राजद की मंशा है गठबंधन घटक दल के किसी भी पार्टी का कैंडिडेट हो मगर टिकट उसी को दिया जाए जो सीट जीत कर आए । इसलिए महागठबंधन में घटक दलों के साथ-साथ घटक दलों के सीटों और उन सीटों पर लड़ने वाले उम्मीदवारों को भी नाप-तौल किया जा रहा है और पैमाना है सिर्फ जीत का । ऐसे में महागठबंधन के जो भी दल हैं, उन्हें सीटों की दावेदारी के साथ-साथ उम्मीदवारों के चयन पर भी विशेष जोर दिया जा रहा है ।
राजद सूत्र बताते हैं कि वामदलों के साथ कई राउंड की बातचीत हो चुकी है मगर सीटों पर अब तक फैसला ना होने का कारण सिर्फ उन सीटों पर लड़ने वाले दावेदार-उम्मीदवारों को परखना है, देखना है कि उम्मीदवार जिताऊ है या नहीं । इसी तरह कांग्रेस के साथ भी राजद का लगातार सीटों को लेकर बातचीत हो रही है और हर विधानसभा सीट पर न सिर्फ जातीय आंकड़े, सामाजिक आंकड़े और प्रत्याशी के किए गए कार्यों और क्षेत्र में उनकी पहचान, जनता के बीच पैठ सहित अन्य सब बातों का आकलन सीधे तौर पर किया जा रहा है । इसी तरह महागठबंधन में रालोसपा के साथ भी उनके सुप्रीमो पूर्व केन्द्रीय मंत्री उपेन्द्र कुशवाहा से बातचीत हो रही है मगर कोई फलाफल नहीं निकला है । वीआईपी पार्टी भी महागठबंधन के तहत चुनावी मैदान में उतरेगा मगर उसकी सीटों का ब्यौरा भी अब तक तय नहीं हो पाया । इसके अतिरिक्त झारखंड मुक्ति मोर्चा भी अब महागठबंधन का हिस्सा बनकर चुनाव लड़ना चाहता है और इसका प्रस्ताव भी राजद को मिल गया है । झारखंड मुक्ति मोर्चा भी बिहार के दक्षिणी क्षेत्र में जहां आदिवासियों का समुदाय रहता है, वहां किस्मत आजमा आएगा । इधर उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने राजद को अपनी ओर से सपा का समर्थन देने का एलान कर दिया है । ऐसे में अगर सपा का उम्मीदवार भी चुनावी मैदान में उतरेगा तो वह भी महागठबंधन का हिस्सा होगा । ऐसे में महागठबंधन का स्वरूप अब काफी बड़ा हो गया है और इस बड़े स्वरूप में बनने वाली एकता भाजपा के लिए बड़ी परेशानी पैदा कर सकती है । इन सबके बीच एक बड़ा मुद्दा महागठबंधन में मुख्यमंत्री का चेहरा बने तेजस्वी यादव के विरोध और समर्थन का भी है ।
महागठबंधन में शामिल होकर चुनाव लड़ने वाले सभी दलों में तेजस्वी को लेकर मतैक्य नहीं है बल्कि कहीं-कहीं किसी का विरोध भी स्पष्ट दिखता है । हालांकि वर्तमान परिस्थितियों में कांग्रेस इस स्थिति में अपने को अलग रखती है और मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर कोई विरोध दर्ज नहीं करना चाहती । कांग्रेस का मानना है कि चुनाव में अगर भाजपा के विरुद्ध बड़ा जनादेश मिलता है तो फिर मुख्यमंत्री के चेहरे पर भी आपसी सहमति से फैसला लिया जाना संभव है । दूसरी बात यह है कि महागठबंधन छोड़कर हाल ही में हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा जदयू के साथ जुड़ गई है जिसमें सबसे बड़ा कारण मुख्यमंत्री के चेहरे का विवाद था । साथ ही एक समन्वय समिति बनाने का भी विवाद था जिसके कारण पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी का कुनबा महागठबंधन छोड़कर वापस जदयू में लौट गया । महागठबंधन में जिस तरह दलों की भीड़ बढ़ रही है, उससे इतना स्पष्ट है कि भाजपा की मुश्किलें भी बढ़ेगी । मगर यह भी तय है कि उन दलों के बीच एकजुटता कितनी मजबूत होगी और मतैक्य कितना होगा, इसपर भी एक सवालिया निशान लग रहा है । अगर देखा जाए तो परिस्थितियां जो बन रही हैं उसमें भाजपा गठबंधन को हराना ही प्राथमिक उद्देश्य महागठबंधन के सभी दलों का है और यही महागठबंधन के दलों के बीच का मजबूत बंधन भी है । एक बात और बहुत महत्वपूर्ण है कि इस बार के चुनाव में राजद अपनी पुरानी पारंपरिक पहचान को बदलकर नई पहचान बनाने की कवायद में जुटा हुआ है । यही कारण है कि राजद के पोस्टर जिसमें लालू-राबड़ी के चित्र पारंपरिक रूप से पोस्टरों में रहा करते थे, वह गायब हो जा रहे हैं और सिर्फ तेजस्वी ही तेजस्वी दिख रहे हैं । हालांकि इस पर विपक्षी दलों, मतलब भाजपा-जदयू गठबंधन को बोलने का मौका और कटाक्ष करने का मौका मिल गया है । मगर राजद इस बार नई सोच, नया बिहार, युवा बिहार के सपने लेकर चुनावी मैदान में कूदना चाहता है ।
इस संबंध में जब राजद के प्रवक्ता चितरंजन गगन से बात की गई तो उन्होंने विपक्ष को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि नीतीश कुमार एंड कंपनी पोस्टरों पर लालू-राबड़ी का फोटो नहीं होने पर जो हाय-तौबा मचा रहे हैं, उससे राजद को चिंता नहीं, क्योंकि राजद ने नया बिहार बनाने, युवा बिहार बनाने, विकसित बिहार बनाने और बेरोजगार मुक्त बिहार बनाने का जो संकल्प लिया है, उसके चेहरा प्रतिपक्ष के नेता तेजस्वी यादव हैं, इसलिए तेजस्वी यादव का ही चेहरा उस पोस्टर पर दिख रहा है । राजद लालू और राबड़ी के पद चिन्हों पर चल रहा है और उनके सपने को पूरा करने के लिए भाजपा और जदयू गठबंधन की सरकार को उखाड़ फेंकने का संकल्प लेकर चल रहा है । ऐसे में उन दोनों गार्जियनों का चेहरा पोस्टरों से हटाना संभव ही नहीं है । राज्य में लगने वाले ढेर सारे पोस्टरों में उनके चेहरे भी नीतीश-मोदी कि जोड़ी को दिख जाएंगे, इसलिए उनके हल्ला करने और बवाल मचाने का कोई औचित्य नहीं है ।
लेखक : विजय शंकर, वरिष्ठ पत्रकार