हरिद्वार समाचार-महाकुम्भ मेले में विभिन्न अखाड़ों द्वारा आयोजित पेशवाईयां आकर्षण का केन्द्र होती है। भव्य पेशवाईयों में साधु-संतों एवं धर्म गुरूओं के दर्शन मात्र से ही लोग अभिभूत हो उठते हैं तथा लोगों को परम-आलौकिक आनंद की अनुभूति होती है। यह बात मेलाधिकारी दीपक रावत ने कही है। उन्होंने कहा कि धीरे-धीरे महाकुम्भ मेला परवान चढ़ता जा रहा है। निर्धारित स्नान की तिथियों में लोगों की आस्था का सैलाब धर्मनगरी में देखने को मिल रहा है।
उन्होंने कहा कि विभिन्न अखाड़ों के प्रस्तावित शाही प्रवेश तथा अखाड़ों के निकलने वाले पेशवाई-जुलूसों के मार्गों की अच्छी हालत होना अनिवार्य है। ताकि पेशवाई-जुलूसों के आयोजन में कोई गतिरोध उत्पन्न न हो। उन्होंने मेला व्यवस्था में लगे अधिकारियों से कहा कि 3 मार्च से शुरू हो रहे पेशवाई-जुलूसों के मार्गों की सभी व्यवस्थाएं समय रहते दुरूस्त कर ली जाए। उन्होंने कहा कि सभी अधिकारी सुनिश्चित करें कि जहां से अखाड़ों के पेशवाई-जुलूस निकलेंगे, उन मार्गों की हालत अच्छी हो। मार्गों में किसी प्रकार के गडढे, कीचड़, खुले हुए मेनहाॅल तथा किसी अन्य प्रकार की गंदगी, कूड़ा-कचरा नहीं होना चाहिए। पेशवाई जुलूस मार्गों की सफाई व्यवस्था की ओर विशेष ध्यान दिया जाए। कहीं पर भी किसी प्रकार की गंदगी नहीं होनी चाहिए। विद्युत, टेलीफोन व केबिल आदि के तार इतने नीचे नहीं होने चाहिए जो पेशनवाईयों के रथों एवं ध्वजों को छूएं।
श्री रावत ने मेलाधिकारी स्वास्थ्य, नगर आयुक्त, नगर निगम, मुख्य अभियंता विद्युत, अधीक्षण अभियंता लोनिवि, जल संस्थान, अधिशासी अभियंता पेयजल निगम, अधिशासी अभियंता भूमिगत विद्युत केबिल परियोजना तथा अधिशासी अभियंता अनुरक्षण शाखा (गंगा)जल संस्थान को निर्देशित किया है कि वह आपसी समन्वय करते हुए दो दिन के भीतर पेशवाईयों के मार्गों से सभी बाधाएं दूर करते हुए व्यवस्थाएं सुनिश्चित करें। उन्होंने अधिकारियों से कहा कि सभी अपर मेलाधिकारी, महाकुम्भ हरबीर सिंह से समन्वय स्थापित करते हुए प्रत्येक स्थल एवं प्रत्येक मार्ग का निरीक्षण कर लें तथा इन मार्गों पर होने वाले सभी कार्य समय से पूर्ण कर लें। उन्होंने स्पष्ट किया कि यदि किसी विभाग के कारण अखाड़ों की पेशवाई-जुलूस को किसी प्रकार की असुविधा होती है तो उसके लिए सम्बंधित विभाग उत्तरदायी होगा। कुम्भ से सम्बंधित सभी प्रकार के कार्य अधिकारियों की प्राथमिकता में शामिल होने चाहिए। ताकि साधु-संत समाज तथा श्रद्धालुओं को किसी भी प्रकार की कोई असुविधा न हो