हरिद्वार, 14 जून। राष्ट्र संत, नेपाल केसरी डॉ. मणिभद्र जी महाराज ‘सर्वोदय शांति यात्रा’ पर हैं, यह पद यात्रा मेरठ से प्रारंभ हुई थी तथा मार्च 2024 में इसका पड़ाव पतंजलि योगपीठ बना था। पतंजलि से यह यात्रा बद्रीनाथ तथा केदारनाथ धाम तक पहुँची तत्पश्चात इस कठिन यात्रा का पड़ाव पुनः पतंजलि योगपीठ बना है।
कल यह यात्रा वापस हरिद्वार पहुँची जिसका पड़ाव पुनः पतंजलि योगपीठ बना। दो धामों की यात्रा पूर्ण कर वापस लौटे जैन मुनि का भव्य स्वागत करते हुए पतंजलि योगपीठ के महामंत्री आचार्य बालकृष्ण जी महाराज ने कहा कि डॉ. मणिभद्र जैन धर्म के महान संत हैं। उन्होंने बताया कि जैन श्रमण, साधु, साध्वी एक स्थान पर न रहकर विहार भ्रमण करते रहते हैं, यह यात्रा भी उसी का विग्रह रूप है। हिमालय जैसा व्यक्तित्व हिमालय की दुर्गम यात्रा सीमित साधनों के साथ पूर्ण कर लौटा है। आचार्य जी ने जैन मुनि को भिक्षा भी प्रदान की।
इस अवसर पर जैन मुनि ने कहा कि पतंजलि योगपीठ के महामंत्री आचार्य बालकृष्ण जी महाराज से उनका भ्रातवत आत्मीय सम्बंध है। पतंजलि की विविध गतिविधियों, समाजसेवा व सृजन के कार्यों का अवलोकन कर जैन मुनि ने कहा कि पतंजलि अपनी उत्कृष्ट सेवाओं व कार्यों से सेवा के नए आयाम स्थापित कर रहा है। योग, आयुर्वेद चिकित्सा, शिक्षा, कृषि, अनुसंधान, गौ-संरक्षण, उद्योग, सूचना एवं तकनीकी आदि विविध क्षेत्रों में पतंजलि उत्कृष्ट सेवाएँ प्रदान कर राष्ट्र सृजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
अपनी यात्रा का अनुभव साझा करते हुए डॉ. मणिभद्र ने बताया कि प्राकृतिक छटाओं और सुंदरता से लबरेज उत्तराखण्ड भारत का सबसे सुंदर प्रदेश है। यहां ऊंचे-ऊंचे हरे-भरे पहाड़ तो वहीं कई धार्मिक स्थल भी हैं। यहां आकर मन प्रफुल्लित हो उठा। उत्तराखण्ड की पर्वत श्रृंखलाओं पर स्थापित ये दोनों धाम प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण हैं। यहाँ का पर्वतीय जीवन साधारण तथा यहाँ के लोगों में सरलता व सादगी है। उन्होंने बताया कि यह पदयात्रा देहरादून, मंसूरी, ऋषिकेश, शिवपुरी, देवप्रयाग, श्रीनगर, रूद्रप्रयाग, कर्णप्रयाग, नंद प्रयाग, जोशीमठ व विष्णुप्रयाग होते हुए 12 मई को बद्रीनाथ धाम पहुँची। बद्रीनाथ धाम के कपाट खुलते समय वहाँ उपस्थित होना प्रफुल्लित करने वाला क्षण था।
उन्होंने बताया कि गढ़वाल हिमालय में अलकनंदा नदी के तट पर स्थित बद्रीनाथ धाम लगभग 3,100 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। बद्रीनाथ धाम नर और नारायण पर्वत श्रृंखलाओं के बीच स्थित है। उन्होंने बताया कि इस मंदिर की स्थापना 8वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य ने की थी। उन्होंने कहा कि बद्रीनाथ धाम प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण तो है ही साथ ही यह साधना भूमि भी है। देवभूमि के कण कण में देवों का वास है। यहाँ वैदिक परंपरा तथा श्रमण परंपरा का अद्भुत मिलन देखने को मिलता है। श्रमण परंपरा जैन धर्म से ओतप्रोत है। जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ भगवान का निर्वाण स्थल कैलाश क्षेत्र रहा है। साथ ही जैन धर्म के देवता घंटाकर्ण महादेव या घंडियाल देवता यहाँ के क्षेत्रपाल तथा मणिभद्र शासन देव माने जाते हैं। उन्होंने कहा कि यहाँ स्थित माणा गांव का नाम मणिभद्रपुरी था जो अपभ्रंश होकर माणा हुआ।
बद्रीनाथ दर्शन के बाद यात्रा का अगला पड़ाव केदारनाथ था जिसका मार्ग अत्यंत कठिन किंतु उत्साहित व रोमांचित करने वाला था। 14 मई को यात्रा केदारनाथ के लिए निकल पड़ी। गोपेश्वर, चौपता, उखीमठ, गुप्तकाशी, सोनप्रयाग होते हुए यात्रा 25 मई को केदारनाथ पहुँची। संकरे कठिन मार्ग पर पैदल, खच्चर तथा डोली इत्यादि के कारण यात्रा थोड़ी दुर्गम थी किंतु केदारनाथ धाम पहुँचने के बाद जिस अति आनंद की अनुभूति हुई, उसका वर्णन करना कठिन है। केदारनाथ के चारों ओर प्राकृतिक सुंदरता के नजारे देखने को मिले। एक ओर 22,000 फीट ऊंची केदारनाथ पहाड़ी, दूसरी ओर 21,600 फीट ऊंची कराचकुंड, तो वहीं तीसरी ओर 22,700 फीट ऊंचा भरतकुंड है। इन तीनों पर्वतों से होकर बहने वाली पांच नदियां मंदाकिनी, मधुगंगा, चिरगंगा, सरस्वती और स्वरंदरी इन पर्वत शृंखलाओं के सौंदर्य को बढ़ा रही हैं। उन्होंने कहा कि वास्तव में यह यात्रा उत्साहित, रोमांचित व प्रफुल्लित करने वाली थी।
यात्रा के सफल होने पर उन्होंने आचार्य बालकृष्ण व पतंजलि योगपीठ का धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा कि सद्भावना के साथ प्रारंभ हुई यात्रा निर्विघ्न पूर्ण हुई।
विदित हो कि इससे पूर्व वे 2007 व 2011 में पतंजलि योगपीठ पधारे थे। 2024 में पतंजलि दूसरी बार यात्रा का पड़ाव बना है। अब तक जैन मुनि लगभग 91 हजार किलो मीटर की पदयात्रा कर चुके हैं जिसमें कन्याकुमारी से जम्मू, मुम्बई, गुजरात, कोलकाता, गुवाहाटी, मेघालय, उत्तराखण्ड, भूटान व सम्पूर्ण नेपाल शामिल हैं।
इस यात्रा में उप-प्रवर्तक श्री अभिषेक मुनि तथा श्री आशीष मुनि भी सहयात्री रहे।

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