हरिद्वार, 7 मई। प्राचीन अवधूत मंडल आश्रम के परमाध्यक्ष महामंडलेश्वर स्वामी संतोषानंद महाराज ने कहा कि सनातन धर्म संस्कृति विश्व की सबसे श्रेष्ठ संस्कृति है। जब-जब संसार पर संकट आया है तो सनातन धर्म ने ही पूरे विश्व को मार्ग दिखाया है। आश्रम में आयोजित दो दिवसीय धार्मिक अनुष्ठान के समापन पर श्रद्धालु भक्तों को संबोधित करते हुए महामंडलेश्वर स्वामी संतोषानंद महाराज ने कहा कि गौ, गंगा और गायत्री सनातन धर्म के मान बिन्दु हैं। प्रत्येक व्यक्ति को गौ, गंगा और गायत्री की साधना करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि गंगा भारत की जीवन रेखा है। गौमुख से निकलकर गंगासागर तक जाने वाली गंगा मानवीय भूलों के चलते प्रदूषित हो रही है। गंगा को प्रदूषण से बचाना प्रत्येक भारतीय का कर्तव्य है। उन्होंने कहा कि गंगा स्नान की सार्थकता तभी है। जब गंगा स्नान के साथ गंगा को निर्मल और अविरल बनाए जाने का संकल्प भी लिया जाए। प्रत्येक श्रद्धालु को गंगा स्वच्छता का संकल्प लेना चाहिए और दूसरों को भी गंगा स्वच्छता के लिए प्रेरित करना चाहिए।
बर्फानी बाबा बद्रीनाथ वाले महाराज ने कहा कि सनातन धर्म संस्कृति के संरक्षण संवर्द्धन और प्रचार प्रसार में संत महापुरूषों ने हमेशा ही अग्रणी भूमिका निभायी है। भक्तों को ज्ञान की प्रेरणा देकर धर्म और अध्यात्म के मार्ग पर अग्रसर करने वाले संत महापुरूषों को अपना कुछ नहीं होता है। संत जो भी करते हैं परमार्थ और मानव कल्याण के लिए करते हैं। उन्होंने कहा कि धर्म शास्त्रों में गुरू की अपार महिमा बतायी गयी है। गुरू के बिना ना तो ज्ञान मिलता है और ना ही कल्याण होता है। संत रूपी गुरू के सानिध्य में मिले ज्ञान के अनुसार धर्मानुकुल आचरण करने से ही कल्याण का मार्ग प्रशस्त होता है।
गौ गंगा धाम सेवा ट्रस्ट के परमाध्यक्ष स्वामी निर्मल दास ने कहा कि उत्तराखंड देवताओं की भूमि और संतों की तपस्थली है। देवभूमि उत्तराखंड के संतों के श्रीमुख से प्रसारित आध्यात्मिक संदेशों से पूरे विश्व को मार्गदर्शन प्राप्त होता है। उन्होंने कहा कि धर्म और अध्यात्म का मार्ग ही श्रेष्ठ मार्ग है। धर्म और अध्यात्म की तलाश में यूरोपीय देशों के लोग पाश्चात्य संस्कृति को त्याग कर सनातन धर्म संस्कृति को अपना रहे हैं। जल्द ही भारत विश्व गुरू की पदवी पर आसीन होगा और पूरी दुनिया को धर्म और अध्यात्म का मार्ग दिखाएगा।
इस अवसर पर महंत राघवेंद्र दास, महंत जयेंद्र मुनि, महंत गोविंददास, महंत प्रेमदास, महंत मुरलीदास, स्वामी ऋषि रामकृष्ण, महंत रघुवीर दास, महंत बिहारी शरण, स्वामी हरिहरानंद, स्वामी दिनेश दास, महंत चिन्मयानंद, स्वामी सुतिक्ष्ण मुनि, सहित बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे।