हरिद्वार, 7 मई। रेलवे रोड़ स्थित श्री सुदर्षन आश्रम अखाड़ा के श्रीमहंत रघुवीर दास महाराज के संयोजन में साकेतवासी श्रीमहंत स्वामी सरस्वत्याचार्य महाराज की 33वीं पुण्यतिथी के उपलक्ष्य में आयोजित गुरूजन स्मृति महोत्सव के अवसर पर आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के चौथे दिन श्रीकृष्ण के जन्म की कथा का श्रवण कराते हुए कथाव्यास हरिनामदास पंडित चन्द्रसागर महाराज ने कहा कि जब-जब भी धरती पर आसुरी शक्तियों का प्रभाव बढ़ता है। भगवान धर्म की रक्षा के लिए अवतार लेकर पृथ्वी पर धर्म की स्थापना करते हैं। मथुरा में राजा कंस के अत्याचारों से परेशान धरती की करुण पुकार सुनकर भगवान नारायण ने कृष्ण के रुप में देवकी के आठवें पुत्र के रूप में जन्म लिया और कंस का अंत कर धर्म और प्रजा की रक्षा की। उन्होंने कहा कि जीवन में भागवत कथा सुनने का अवसर सौभाग्य से मिलता है। इसलिए इस अवसर का लाभ अवश्य उठाना चाहिए। लेकिन कथा का सुनना तभी सार्थक होगा। जब कथा में बताए हुए धर्म मार्ग पर चलकर परमार्थ का काम करें। श्रीमहंत रघुवीर दास महाराज ने श्रद्धालु भक्तों के श्रीमद्भावगत कथा की महिमा से अवगत कराते हुए कहा कि भक्त और भगवान की कथा श्रीमद्भावगत ज्ञान का अथाह सागर है। जिसे जितना ग्रहण करो। जिज्ञासा उतनी ही बढ़ती जाती है। कथा के प्रत्येक सत्संग अतिरिक्त ज्ञान की प्राप्ति होती है। उन्होंने कहा कि श्रीमद्भागवत कथा कल्पवृक्ष के समान है। जिसे सभी इच्छाओं की पूर्ति की जा सकती है। कथा से मिले ज्ञान को आचरण में धारण कर लिया जाए तो सभी कार्य संभव हो जाते हैं। भागवत कथा का श्रवण करने मात्र से ही जीवन भवसागर से पार हो जाता है। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन में श्रीमद्भावगत कथा का आयोजन और श्रवण अवश्य करना चाहिए। इस अवसर पर महंत सूरजदास, महंत जयराम दास, महंत बिहारी शरण, स्वामी अंकित शरण पुजारी गिरीष दास, सहित बड़ी संख्या में श्रद्धालु जन शामिल रहे।