हरिद्वार समाचार– भारत के ज्ञान, संस्कृति और दर्शन को विश्व भर में फैलाने वाले महान दार्शनिक और अध्यात्मिक गुरु स्वामी विवेकानंद की जयंती पर संतों की सबसे बड़ी संस्था अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने उन्हें नमन किया है। तपोनिधि श्री पंचायती अखाड़ा निरंजनी में अखाड़ा परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमहंत नरेन्द्र गिरी महाराज ने उन्हें सन्यासियों का प्रेरणा स्रोत बताते हुए कहा है कि स्वामी विवेकानंद ने सन्यास परम्परा का पालन करते हुए देश ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में भारतीय संस्कृति का परचम लहराया था। उन्होंने विश्व में भारतीय संस्कृति को पुर्नस्थापित करने का उल्लेखनीय कार्य किया। श्रीमहंत नरेन्द्र गिरी ने देश के युवाओं और युवा संतों से स्वामी विवेकानंद के बताये आदर्शों पर चलने की अपील करत हुए कहा कि स्वामी विवेकानंद के बताये रास्ते पर चलकर ही राष्ट्र और धर्म को बचाया जा सकता है। श्रीमहंत नरेन्द्र गिरी ने कहा कि स्वामी विवेकानंद सन्यासियों के लिए देवतुल्य हैं, इसलिये सभी उनका अनुसरण भी करते हैं। आनन्द पीठाधीश्वर आचार्य महामण्डलेश्वर स्वामी बालकानन्द गिरी महाराज ने कहा कि स्वामी विवेकानन्द अपने गुरू स्वामी रामकृष्ण परमहंस के दिखाए मार्ग पर चलते हुए प्रेम, सद्भाव और समानता जैसे मूलभूत सिद्धांतों पर विश्वास करते थे। उन्होंने हिंदुत्व को जिस तरीके से समझाया था। उससे पश्चिमी देशों में भारत और हिंदुत्व का काफी सकारात्मक प्रभाव पड़ा। स्वामी विवेकानन्द ने देश के विकास के लिए ज्ञान और शिक्षा के विस्तार के साथ सांस्कृतिक जड़ें मजबूत करने का संदेश समाज को दिया। समाज उत्थान के लिए निर्धनों की मदद करना और मानव सेवा का संदेश देना ही उनका मूल उद्देश्य था। भावी पीढ़ी को उनके विचारों को आत्मसात कर अपने जीवन में अपनाने की आवश्यकता है। मां मनसा देवी मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष श्रीमहंत रविन्द्रपुरी महाराज एवं निरंजनी अखाड़े के सचिव श्रीमहंत रामरतन गिरी महाराज ने कहा कि स्वामी विवेकानन्द एक आदर्श महापुरूष थे। जिन्होंने राष्ट्रवाद को बढ़ावा दिया। जिससे प्रेरित होकर ही उन्नीसवीं शताब्दी के अंत तक कई क्रांतिकारियों को सही दिशा मिली। स्वामी विवेकानन्द अपने मिशन से दुनिया की भौतिक व आध्यात्मिक दोनों जरूरतों को पूरा करना चाहते थे। जो आज भी पूरे समाज के लिए एक मिसाल है। इस दौरान श्रीमहंत रामरतन गिरी, श्रीमहंत ओंकार गिरी, श्रीमहंत लखन गिरी, महंत मनीष भारती, महंत गंगा गिरी, महंत राजेंद्र भारती, महंत नरेश गिरी, महंत नीलकंठ गिरी, महंत राधेगिरी आदि मौजूद रहे।