हरिद्वार, 24 सितम्बर। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के पूर्व प्रवक्ता बाबा हठयोगी महाराज ने ब्रह्मलीन जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज के शिष्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती एवं स्वामी सदानंद सरस्वती महाराज के शंकराचार्य नियुक्त होने को सही ठहराते हुए कुछ संतों पर भ्रामक प्रचार करने का आरोप लगाया है। प्रैस को जारी बयान में बाबा हठयोगी दिगंबर ने कहा कि शंकराचार्य की नियुक्ति का अखाड़ों से कोई लेना देना नहीं है और ना ही अखाड़े शंकराचार्य की नियुक्ति करते हैं। शंकराचार्य का चुनाव काशी विद्वत परिषद के द्वारा किया जाता है और अन्य पीठ के शंकराचार्य रिक्त पीठ पर शंकराचार्य की नियुक्ति करते हैं। वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए जहां आश्रम अखाड़ों मठ मंदिरों में रोजाना संपत्ति को लेकर गुरु शिष्य और आम जनमानस में झगड़े होते हैं और कोर्ट में लंबी लड़ाई चलती है। उसको देखते हुए ब्रह्मलीन जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज ने अपने शिष्यों को शंकराचार्य नियुक्त किया था। जिसका सभी संतो को सम्मान करना चाहिए। स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती एवं स्वामी सदानंद सरस्वती महाराज उच्च कोटि के विद्वान महापुरुष है और वर्तमान में शंकराचार्य पद के योग्य हैं। लेकिन कुछ संत मीडिया में बने रहने के लिए रोजाना कुछ ना कुछ अनर्गल बयानबाजी कर नए विवाद को जन्म देते हैं। प्राचीन काल से ही शंकराचार्य पद की नियुक्ति का अखाड़ों से कोई वास्ता नहीं है। फिर सन्यासी अखाड़े शंकराचार्य की नियुक्ति कैसे कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि वसीयत के आधार पर नवनियुक्त शंकराचार्य सम्मानित पद पर नियुक्त हुआ और संत समाज उनके साथ है। शंकराचार्य की नियुक्ति को लेकर किसी भी प्रकार का विवाद नहीं है। मात्र एक संत द्वारा भ्रामक प्रचार फैलाना द्वेष पूर्ण है। संत समाज इसकी निंदा करता है। बाबा हठयोगी महाराज ने आरोप लगाया है कि राजनीति करने के चक्कर में संत समाज में फूट डालने का कार्य किया जा रहा है। जिसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। जिस प्रकार देश के सबसे वरिष्ठ और विद्वान शंकराचार्य ब्रह्मलीन स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज का सभी आदर और सम्मान करते हैं। उसी प्रकार उनके निर्णय का भी सम्मान किया जाएगा।