संजी

 

से अधिक की धनराशि

देहरादून समाचार- (राज्य स्वास्थ्य प्राधिकरण): न्यूरोसर्जरी के मामले जितने संवेदनशील और जोखिम भरे होते हैं उतने ही खर्चीले भी होते हैं। इस मरज को साध पाना कभी बिरलों के वश में होता था। उसका कारण भी यही था कि खतरे के निस्तारण पर जितना पैसा खर्च होता है वह ज्यादातर की क्षमता से बाहर होता था। लेकिन अब आयुष्मान ने इस असाध्य सी समझी जाने वाली बीमारी को साधने के लिए हर किसी को ताकत दे दी है। सुखद यह है कि अभी तक योजना के अंतर्गत प्रदेश में 4250 से अधिक न्यूरो मरीजों का मुफ्त में उपचार हो चुका है।

मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी की चोटें तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करने वाले विकारों का ज्यादातर मौकों पर कारण बनते हैं। सीधे तौर पर भी देखा जाए तो तंत्रिका विज्ञान अन्य के मुकाबले ज्यादा जटिल रहा है। न्यूरो सर्जरी की गंभीरता के चलते समाज में इसे लेकर भय का होना भी स्वाभाविक है। क्योंकि इस बीमारी से पार पाना पहले जरा भी आसान नहीं था, इसका पहला और एकमात्र कारण इस उपचार का खर्चीला होना था। इलाज तो था लेकिन अधिकांश के बजट से बाहर।

ऐसे उदाहरणों की भी कमी नहीं होगी जब न्यूरो सर्जरी के खर्च को देखते हुए मरीज और उनके परिजनों ने उपचार से हाथ खड़े किए होंगे। समाधान उपलब्ध होने के बाद भी खर्चे की वजह से अधिकांश मरीजों के लिए यह बीमारी लाइलाज सी हो गई थी। जिसका उपचार का खर्च बूते से बाहर हो उस मरज को लाइलाज ही समझा जाएगा।

इसे खुशनसीबी ही कहा जायेगा कि अब आयुष्मान योजना ने खर्चीले इलाज के कारण लाइलाज सी बनी न्यूरो संबंधी ब्याधि का उपचार भी हर किसी में वश में कर दिया है। अभी तक 4250 से अधिक मरीज आयुष्मान योजना के तहत मुफ्त में न्यूरो सर्जरी का उपचार ले चुके हैं। जिस पर प्रदेश सरकार के 20 करोड़ से अधिक खर्च हो चुके हैं। हालांकि सरकार और राज्य स्वास्थ्य प्राधिकरण की मंसा अनुसार जीवन बचाने का कोई मोल नहीं होता लेकिन फिर भी यह आंकड़ा छोटा नहीं है।

राज्य स्वास्थ्य प्राधिकरण द्वारा संचालित आयुष्मान योजना के तहत तंत्रिका ब्याधि का उपचार कराने वाले लाभार्थियों में दर्जनों मरीज ऐसे हैं जिनके उपचार पर 1 लाख से अधिक खर्च आया है। योजना के तहत देहरादून के 1170 से अधिक, हरिद्वार के 880, टिहरी के 354, पौड़ी के 310, यूएस नगर के 206 से अधिक मरीजों ने न्यूरो सर्जरी का उपचार लिया है।

पौड़ी से जगदंबा पंवार, रक्षित कुमार, देहरादून निवासी दयानंद उन तीमारदारों में हैं जिन्होंने अपने मरीज की न्यूरो से संबंधित परेशानी और पूरे परिवार पर पड़ने वाले उसके प्रभाव को बेहद नजदीक से महसूस किया है। वह कहते हैं कि इस ब्याधि का उपचार और रिकवरी की तासीर अन्य से एकदम अलग है। इसकी तुलना सामान्य में नहीं की जा सकती। वह कहते हैं कि आयुष्मान योजना न होती तो न्यूरो जैसी जटिल समस्या के बड़े खर्च को उठाना और भी मुश्किल हो जाता। उनके मरीज का मुफ्त मं उपचार हुआ। अन्य व्यवस्थाओं पर खर्चा भले ही हुआ है लेकिन महंगे इलाज में उसकी गिनती के कोई मायने नहीं रह जाते। 

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